ग़ज़ल
मात्रा : 1222 1222 122
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उसे मैं भूल जाना चाहता हूँ
मैं फिर से मुस्कुराना चाहता हूँ ।
गुमीं आवाज़ मेरी ज़िन्दगी में
जिसे मैं फिर से पाना चाहता हूँ ।
बड़ी वीरान सी यह ज़िन्दगी हैं
इसे गुलशन बनाना चाहता हूँ ।
मिले हैं घाव मुझको गुलसिताँ से
फ़िज़ा को यह बताना चाहता हूँ ।
मुसलसल चैन खोया ज़िन्दगी भर
ज़रा सा चैन पाना चाहता हूँ ।
उमर भर जाग कर काटी हैं रातें
फ़कत खुद को सुलाना चाहता हूँ ।
कफ़स से हो गया आज़ाद मैं अब
पैरों को फिर फैलाना चाहता हूँ ।
अभी ज़िंदा बचा जो ' आरज़ू ' हैं
मैं तो 'अर्जुन ' पुराना चाहता हूँ
आरज़ू-ए-अर्जुन
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