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"बीत गई है रात"

"बीत गई है रात"










बीत गई है रात, फिर एक बार
फूट पड़ी है रात फिर एक बार
कर कंधों को मज़बूत फिर से
कूद अग्निकुंड में फिर एक बार
बीत गई है रात, फिर एक बार ......

तू मौन खड़ा, कुछ बात नहीं है
वो कौन खड़ा कुछ बात नहीं है
छोड़ गरज़-परवाह इस दुनिया की
जो देखा है कर सपना साकार
बीत गई है रात, फिर एक बार .....

तेरे पैर जले तो जलने दो
तेरे हाथ ठिठुरें तो ठिठुरने दो
गर फूल रही है सांस तो भी
तू करता रह निरन्तर प्रहार
बीत गई है रात, फिर एक बार ...

तू खा ले जो भी गठरी में है
और पी ले जो अंजुली में है
फिर करदे कूच इन राहों पे
हस के या फिर मन को मार
बीत गई है रात, फिर एक बार ....

आज पैरों तले पत्थर है पड़े
कल होंगे यहाँ कालीन बिछे
तेरी मेहनत को कोना कोना
पुलकित हो पुकारेगी हरबार
बीत गई है रात, फिर एक बार ....

आरज़ू-ए-अर्जुन 

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