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शायरी

AARZOO KI KALAM SE

उनका तस्सुवर भी क्या करते
जो रकीब के साथ थे,
करूँ सजदा या नज़रों से गिरा दूँ
बड़ी मुश्किल में ज़ज़बात थे,
किया करीब एक तमाशायी को सितमगर
और किया दूर, जो सदियों से पास थे।                          

फूलों की चाहत है तो काँटों से भी दिल लगाना होगा
मंजिल की चाहत है तो राहो को भी सजाना होगा ,
यह इश्क़ रूठने मनाऩे का खेल नहीं है आरज़ू ,
यहाँ  तो हद से भी गुजर जाना होगा ..........                

वो मोड़ गए है दिल कुछ सामान अभी बाकी है
वो गुजरे ज़माने की पहचान अभी बाकी है
तू मिटा दे चाहे अपने दिल की किताब से मुझे
वो आखरी बेंच पे तेरा मेरा नाम अभी बाकी है
वो गए ज़माने जब हारते थे इस दिल को ,
आज जीते है कई दिल और ज़हान अभी बाकी है …    


तूं  महके खुशबुओं में नहा के सनम
हमें तो खुश्बू खून पसीने से आये
तू छलकाये शराब कातिल निगाह से
हमें तो नशा मस्त मलंग होकर आये ,
तेरा रूप सुनहरी दोपहर जैसा
हमे तो सिर्फ चांदनी राहत पहुंचाये
तू बदलती रहती है ज़ायके ज़बान के
हमे तो सिदक दो मिस्सी रोटी में आये,
न लगा यारी इस फ़क़ीर गरीब से
यह ऊंच नींच की दुनिया देख न सुखाये,
है दिल तो खेल ले इशक़ की बाज़ी
कल यह जवानी फिर आये न आये,
छोड़ अहँकार सोहने रूप का सोहनिये
मना ले रब को, कौन जाने
यह हीरा जन्म फिर आये न आये …
(आरज़ू)

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आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

" न रुकना कभी न थकना कभी "

" न रुकना कभी न थकना कभी " इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है  है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर है नज़र तो सच की पहचान कर मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो . (आरज़ू ) AARZOO-E-ARJUN