बस,पहला क़दम उठाओ
हमने खुद को खुद की ही बेड़ियों में जकड लिया है, अपने ही दायरे में सिमट कर रह गए हैं। हमने अपनी सोच समझ को सीमित कर लिया है, अपनी सहूलियत के मुताबिक एक सुरक्षा घेरा बना लिया है, अब उस घेरे से बाहर क़दम रखने में डर लगता है। जितनी ज़रूरत है उतना ही दिमाग चलता है उतने ही पाँव चलते है यहाँ तक कि हमने अपने ख़ाबों को भी दायरे में बांध रखा है।
बड़ी अजीब सी बात है, आज ख़ाब किसी और के हैं, देखता कोई और है, पूरा कोई और कर रहा है, कमाल है। पूरी प्रणाली मशीनी हो गई है। आज हम अपने नहीं अपनों के ख़ाब पूरे करने की कोशिश कर रहे हैं और उसके लिए मेहनत हम नहीं हमारे अपने यानि माँ बाप, बड़े भाई यां बहिन करती हैं, सिर्फ़ ज़रिया हम बनते हैं। इस तरह से हम कुछ बन भी गए तो हमारी योग्यता क्या होगी,हमारी गुणवता क्या होगी। हम दूसरों से साधारण होंगे, दूसरे हमसे ज्यादा अक्लमंद होंगे, उनका तज़ुर्बा हमसे बेहतर होगा। और ऐसा क्यों होता है ? क्योकि हमने अपना पहला कदम खुद नहीं उठाया था। हमने अपनों की बैसाखिया थाम रखी थी। कभी धूप बर्दाश्त ही नहीं की, बारिश में ठिठुर के काँपे ही नहीं, कभी आग में जले ही नहीं, कभी नंगे पाँव पत्थरों पे काँटों पे चले ही नहीं, आँधियों, बिजलियों का सामना किया ही नहीं, कभी ज़मीन पे गिर के सम्भले ही नहीं,कभी हार देखी ही नहीं,चखी ही नहीं और कभी काली सियाह रात में सूरज का इंतज़ार किया ही नहीं। सबकुछ दूसरों पे थोप दिया अपने ही करते रहे नतीजा हम अपांग हो गए , लाचार हो गए विकलांग हो गए। ज़रुरत सिर्फ़ इतनी थी कि पहले कदम से आख़री कदम तक हर कदम हम ख़ुद उठाते। ज़िंदगी के उतार चढ़ाव में सफ़र करते हर कदम कुछ सीखने को मिलता।
एक चींटी अपने वज़्न से २० गुना ज़्यादा भार उठा सकती है। हमें तो अपना शरीर भी भारी लगता है। चींटियों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। चींटियाँ बहुत मेहनती होती हैं, वो अकेले भी बखूबी काम कर सकती हैं और सबके साथ मिल कर तो ये बड़ी गिरगिट को भी उठा के ले जाती हैं बहुत कड़ी मेहनत करती हैं दिन रात दौड़ धूप करके अपने तथा अपनों के लिए पर्याप्त भोजन इकत्रित करलेती हैं वो किसी रानी मक्खी के पीछे नहीं चलते स्वछंद तथा सवतंत्र होते हैं। इसके विपरीत हम इंसान क्या करते हैं थोड़ी देर रात पढ़ने पे हमारी आंखें दर्द होने लगती हैं काम करने पे सर दर्द होने लगता हैं थोड़ी धूप सिर पे पड़ती है तो ग़श खा के गिर जाते हैं नंगे पाँव चलने पे छाले पड़ जाते हैं पैर सूज जाते हैं,क्या बेहूदगी है ये ? क्या हम इतने कमज़ोर हैं? हर चीज़ सीखने के लिए किसी का सर पे खड़ा होना ज़रूरी है क्या ? किसी को देख के पढ़ के महसूस करके नहीं सीख सकते क्या?
पंछियों को कोई नहीं सिखाता कि प्रातः काल उठो , उन्हें कोई नहीं बताता कि दाना चुगने कितनी दूर और कहाँ तक जाना हैं। मछलियों को कोई नहीं सिखाता कि पानी में कैसे तैरना हैं शिकार कैसे करना है साँस कैसे लेनी है। जंगल में जानवरों को कौन बताता है के अपनी सुरक्षा कैसे करनी है शिकार कैसे करना है गर्मी सर्दी से कैसे बचना है,नदी की धारा को पता है के पत्थरों से चोट खाते हुए समुन्दर पहुंचना है। मगर ये सिर्फ़ इंसान है जिसे सिखाना पड़ता है , बताना पड़ता है , समझाना पड़ता है। बड़ी अजीब सी बात है कि भगवान् की सबसे खूबसूरत रचना हम इंसान हैं मगर यहाँ पे आ के क्या बन गए हम। देखा जाए तो इसमें किसी का दोष नहीं है, हमें किसी ने नहीं कहा के आलसी बनो , झूठ बोलो, बहाने बनाओ , साजिशें करो , क़त्लो ग़ारत करो दूसरों को लूटो किसी की मजबूरी का फायदा उठाओ किसी ने नहीं कहा। ये सब हम अपनी सहूलियत के लिए खुदगर्जी के लिए करते हैं सब कुछ करते हैं सिवाय ईमानदारी से मेहनत करने के। डर लगता है मुक़ाबला करने में , भीड़ का सामना करने में , अपनी छवि को सीधे तरीके से निखारने में तकलीफ सहनी पड़ी है मगर करो नाम ऐसे नहीं बनते , खुद को जलना पड़ता है एक नाम बनाने के लिए मुश्किल नहीं है ये सब पहला क़दम तो बढ़ाओ।
दोस्तो,"जब तक अंदर आग नहीं लगेगी,बात नहीं बनेगी", spark yourself, star yourself. इतहास गवाह है जो बच्चे बचपन में कड़ी आग से गुज़रें हैं वो कामयाबी के आसमान में आफताब बनके उभरें हैं। हमने भगत सिंह ,शहीद उधम सिंह के बचपन को पढ़ा है उनको किसी ने नहीं कहा था के आज़ादी के लिए लड़ो फांसी के तख्तों पे झूल जाओ, ये कदम उनके खुद का था आज वो घर घर पूजे जाते हैं। बेहद ग़ुरबत की जंज़ीरों को तोड़के शास्त्री जी बचपन में खुद निकले थे पढ़ने के लिए , ये गंगा ऐसे ही पार नहीं करते थे वो तैर कर रोज़ कॉलेज जाने के लिए , देश के दूरसे प्रधान मंत्री बने, लोग पूजते हैं उन्हें। अब्दुल कलाम ने लोगों के घरों में अखबारें ग़ुब्बारे खरीदने या वीडियो गेम्स खेलने के लिए नहीं बांटी थी आसमान छूने का सपना था उनका , उन्होंने देखा पूरा किया और करोड़ो लोगों को रास्ता दिखा गए ऐसे सपनों को पूरा करने का। चिंगारियाँ उडा करती थी जब अटल बिहारी जैसे बच्चे अपने दोस्तों के साथ कविता पाठ करते थे लिखते थे।बिहार के दशरथ मांझी ने तो पहाड़ तोड़ के नदी बहाने वाली कहावत को भी सच कर के दिखा दिया क्या लोग थे वो। उनके माँ बाप ने कभी भी उनके होमवर्क की कापियां खुद नहीं लिखी उनके प्रोजेक्ट खुद नहीं बनाये उनके खाने के डिब्बे स्कूल तक नहीं पहुँचाए उनकी फीस देने के लिए लाइन में नहीं लगे। वो खुद समझदार थे वो अपना हर फैसला खुद करना जानते थे उन्हें अपना पहला कदम ख़ुद उठाना आता था। आप किसका इंतज़ार करते हो ? क्यों? किसलिए ? इतना डरते हो।
जो कुछ पहले कर गए वो भी इंसान थे, जो अब कर के दिखा रहे हैं, वो भी हमारे जैसे इंसान हैं और जो कर जाएँगे वो भी हमारे जैसे ही इंसान होंगे फर्क सिर्फ इतना होगा वो महान कहलाएँगे, हम परेशान कहलाएँगे। क्यों डर रहे हो, किसने बांध रखा है?इतने सहमे हुए क्यों हो ? आप सबमे आसमाँ को छूने वाली ताक़त है आप सबमे भरपूर टैलेंट भरा पड़ा है यहाँ खड़ा एक एक बच्चा नायाब है मगर सिर्फ खुद से अनजान है , अपने ही डर से डर रहे हो,निडर हो जाओ,पहला कदम बढ़ाओ, आपके अंदर जो छुपा है उसे पहचानो बाहर निकल लाओ कोशिश तो करके देखो कुछ नहीं होगा। आपके अंदर जो है उसे आसमाँ की बुलंदी तक ले जाओ पूरी मेहनत लगन से पूरे आसमान में छा जाओ। नतीजे की फ़िक्र मत करो बस अपना पहला कदम उठाओ दूसरा उसके पीछे ख़ुद आ जायेगा।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते,सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अब पूरी भगवद गीता सुनानी पड़ेगी क्या वो भी आसान शब्दों में, नहीं आप सब समझदार हो। बात ये भी सही है कि :-
मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
आखिर में यही कहना है कि समय न तो आपके पास है न किसी के पास। अपनी आंखें खुली रखो। अपने सपनों को ज़िंदा रखो और अपनी कामयाबी के बीज अभी मतलब अभी ही बीज डालो इतनी मेहनत करो के आपकी कामयाबी की फ़सल समय रहते ही लहलहा उठे। अपने अंदर से आलस, ईर्षा , द्वेश, हीनता, नकारात्मकता, दूसरों पर निर्भरता, खंडित विचारधारा को निकाल कर उसकी होली जला दो। स्वतन्त्र हो जाओ, संभल जाओ,स्वछंद हो जाओ। पूरी लगन से पूरी ताक़त से बिना किसी को दिखाए मेहनत करने में जुट जाओ कोई और हो न हो ये दिन की रौशनी और रात के सितारे तेरी कामयाबी के पीछे की मेहनत के गवाह जरूर होंगे। डरो मत, बस पहला कदम उठाओ आगे बढ़ जाओ , यकीनन मंज़िल आपकी राह में आँखें बिछाए इंतज़ार कर रही है।बस पहला क़दम उठा कर तो देखो !
आरज़ू
Great topic very inspiring
ReplyDeleteI really inspired from it
thanx a lot
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