" मैं खुद से बातें करता हूँ " कभी कभार मैं खुद से एक सवाल करता हूँ क्या सच मे वफ़ा कोई चीज़ है जहाँ में, नहीं मेरा मतलब कोई किसी से इतना प्यार कर सकता है कि खुद की एहमियत को खत्म कर दे । बहुत बार सुना है कि किसी ने प्यार में जान दे दी, किसी ने प्यार में जान ले ली, कोई रात की नींद हराम करके बैठा है तो कोई दिन का चैन खोकर। किसी के दिन खुमार में गुजरते है तो किसी के दिन प्यार में रो रो कर मगर ये प्यार, मोह्ब्बत, इश्क़, स्नेह, प्रेम ये है क्या ? किसी को आज तक कुछ नहीं पता। देखा जाए तो इसका हर शब्द आधा अधूरा है पूरी उम्र गुजर जाती है इन शब्दों के मतलब को पूरा करते करते, प्यार का "प" आधा मोह्हबत का "ब" आधा इश्क़ का "श" आधा और प्रेम का "र" आधा। सब कुछ आधा अधूरा सा ही लगता है फिर भी एक ज़िद है की मोह्ब्बत हो किसी से, यह पागल सा दिल कहता है की दिल दो और दिल लो किसी से। इतना मतलबी है की अंजाम की परवाह तक नह...
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