" पहचान " मैं कभी तेरे होटों की मुस्कान हूँ तो कभी तेरी साँसों की पहचान हूँ तेरे दिल में गूँजती घंटियों का शोर तो कभी शाम को मस्जिद की आज़ान हूँ मेरी खुशबू है तेरे हर अलफ़ाज़ में मैं कभी गीता, बाइबल तो कभी कुरान हूँ तू चाहता है जिस पिण्ड को पवित्र करने को मैं वही कुम्भ और अमृत सरोवर का स्नान हूँ मैं खेलता हूँ इन बाग़ बगीचो और जंगलों में मैं ही तेरे सुनहरे खेत और खलियान हूँ तू सराबोर है जिस आधुनिकता की रौशनी में मैं वही परम्परा और आधुनिक जहान हूँ मैं कभी तेरी धड़कनो का मधम शोर तो कभी होंसलों का बुलंद तूफ़ान हूँ कर कोशिश जितनी भी मुझे भूलने की मैं कल भी तुझमे शामिल था , मैं आज भी तुझमें विद्धमान हूँ कभी लहराता हूँ तेरे सर पे शान से तो कभी गढ़ा हुआ जीत का निशान हूँ रख हाथ दिल पे और सर उठा के देख मुझे मैं वही तिरंगा और वही हिन्दोस्तान हूँ मैं तेरी आन हूँ, बान हूँ, मैं तेरी शान हूँ ए बंदे मैं ही तेरा भारत हिन्दोस्तान हूँ ( आरज़ू )
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