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( सुलगती आरज़ू )

              ( सुलगती आरज़ू  )

पाके आबो हवा में खुशनुमा थी  सांसे तेरी
सुनहरे मुस्तकबिल  तलाशती थी आँखे तेरी
थी खुशबू  ही खुशबु  हर कोने  में बिखरी हुई
किसी को हसाती गुदगुदाती  थी बातें  तेरी
किताबों में समेटे थे कितने रंगीन से सपने
हर रोज़ होती थी इनसे मुलाकातें तेरी
वो आखरी बार अम्मी ने  माथे को चूमा होगा
वो  आखरी बार अब्बु ख़ुशी से झूमा होगा
अभी अम्मी तेरे बिखरे कपडे समेटती होगी
अभी अब्बा रास्ते में घर लौटते ही होंगे
क्या खबर थी उन्हें  बंद हो जाएँगी सांसे तेरी
एक खरोच नहीं थी जहाँ, वहाँ आज लगी है गोली
दहशत गर्दो ने खेली है आज तुमसे खून की होली
कभी अम्मी को कभी अब्बा को पुकारा होगा
कभी रहम  भीख चाहती होंगी आँखे तेरी
अंधाधुन्द गोलियां अधखिली कलियों  बरसी
बिखर गए नाज़ुक वो पत्ते खुली रही निगाहें तरसी
देख कर खुदा का दिल भी  ख़ौफ़ खाता होगा
चंद लम्हों में जहन्नुम बना दी दुनिया तेरी
कुछ रह गया था बाकी तो आँखों में इंतज़ार
अब्बा के दिल में चुभते होंगे नश्त्र कई हज़ार
अम्मी ने अबतक अपनी पलकें भी न झपकाई
कितनी सूनी रह गयी है भाईजान की भी कलाई
अभी भी लगता होगा आएगी आहट तेरी
कितना खौफनाक मंज़र था जब तुझको पहचाना होगा
लुट गई है दुनिया उनकी बड़ी मुश्किल से माना होगा
पड़ गई आसमान में दरारें उनके चीखो पुकार से
बिखर गए टुकड़ों में वो भी जाने कई हज़ार से
खून के आंसू पीके उसने बंद की होगी आँखे तेरी
मै पूछता हूँ क्या गुनाह था के वो मुस्कुराते थे
मैं पूछता हूँ क्या कुसूर था के  गुलशन महकाते थे
क्यों छीन ली मुस्कान उनकी तोड़ दिया फिर डाली से
क्या खिला सकता है कोई पूछना ज़रा किसी माली से
दिन होगया है खून से लथपथ, सिसक रही है रातें मेरी
या खुदाया तू रहता  कहीं तो इस ज़मीं पे उतर
है हिम्मत तुझमे तो इन् लाशों को हाथ में पकड़
फिर कहना मेरी आँखों  में देखकर अपनी खुदाई
क्या सदियों तक तुझे सुकून  नींद आई
ग़र नहीं तो मिटा दे किताबों से तमाम बातें तेरी
ग़र नहीं तो मिटा दे किताबों से तमाम बातें तेरी।

( आरज़ू ) 

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चलो योग करें

Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करें    चलो   योग   करें आरज़ू-ए-अर्जुन

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ( in punjabi)

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਵੇਖਦੇ ਵੇਖਦੇ ਕਿਸੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਧੀ ਵਾਂਗ ਜਵਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਮੈਂ ਨਾ ਤੇ ਇਸਨੂੰ ਕੋਈ ਖਾਦ ਪਾਈ ਨਾ ਹੀ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ, ਇਸ ਰੁਖ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਧੀ ਨਿਮੋ ਦੀ ਯਾਦ ਆਈ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਬੇਜ਼ੁਬਾਨ, ਇਕ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਇਕ ਚੇਤ ਵਿੱਚ ਨਾ ਉਸਨੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਨਾ ਇਸ ਖਜੂਰ ਨੇ ਹੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕੁਝ ਮੰਗਿਆ ।                        ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                        ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਕਿਨੀਆਂ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿੱਚ ਭੁਜਦਾ ਸੜਦਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇਹ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਵੇਂ ਝਲ੍ਹਦਾ ਸੀ ਇਹ ਝਖੜ ਹਨੇਰੀਆਂ ਸਿਰ ਤੇ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਪੱਤੇਆਂ ਦੀ ਪਗੜੀ ਪਾ ਕੇ ਝੁਮਦਾ ਹੈ ਗਾਉਂਦਾ ਹੈ " ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ, ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ " ਇਸਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਨਿਮੋ ਨਾਲ ਕਿੰਨੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਗਰੀਬੀ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਦੀ ਪੱਗ ਨੂੰ ਗਿਰਵੀ ਰਖ ਕੇ ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਮਾੜੀ ਨੂੰ  ਚੁੰਨੀ ਚੜਾਈ ਸੀ, ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਅਖਾਂ ਵੀ ਨਹੀ ਝਪਕਾਈਯਾਂ ਸਨ ਉਸਤੇ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਦੋਂ ਜਵਾਨੀ ਆਈ ਸੀ                      ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                      ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਅੱਜ ਇਸ ਖਜੂਰ ਤੇ, ਹਰੇ ਤੋਂ ਪੀਲੇ, ਪੀਲੇ ਤੋ

" न रुकना कभी न थकना कभी "

" न रुकना कभी न थकना कभी " इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है  है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर है नज़र तो सच की पहचान कर मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो . (आरज़ू ) AARZOO-E-ARJUN