( सुलगती आरज़ू ) पाके आबो हवा में खुशनुमा थी सांसे तेरी सुनहरे मुस्तकबिल तलाशती थी आँखे तेरी थी खुशबू ही खुशबु हर कोने में बिखरी हुई किसी को हसाती गुदगुदाती थी बातें तेरी किताबों में समेटे थे कितने रंगीन से सपने हर रोज़ होती थी इनसे मुलाकातें तेरी वो आखरी बार अम्मी ने माथे को चूमा होगा वो आखरी बार अब्बु ख़ुशी से झूमा होगा अभी अम्मी तेरे बिखरे कपडे समेटती होगी अभी अब्बा रास्ते में घर लौटते ही होंगे क्या खबर थी उन्हें बंद हो जाएँगी सांसे तेरी एक खरोच नहीं थी जहाँ, वहाँ आज लगी है गोली दहशत गर्दो ने खेली है आज तुमसे खून की होली कभी अम्मी को कभी अब्बा को पुकारा होगा कभी रहम भीख चाहती होंगी आँखे तेरी अंधाधुन्द गोलियां अधखिली कलियों बरसी बिखर गए नाज़ुक वो पत्ते खुली रही निगाहें तरसी देख कर खुदा का दिल भी ख़ौफ़ खाता होगा चंद लम्हों में जहन्नुम बना दी दुनिया तेरी कुछ रह गया था बाकी तो आँखों में इंतज़ार अब्बा के दिल मे...
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